Kabir Das Ke Dohe in Hindi – कबीर के प्रसिद्द दोहे और उनके अर्थ

Neha Arya
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Kabir Das Ke Dohe in Hindi

भारत के महान हिंदी कविओ में से एक संत कबीर दास है। इनकी वाणी अमृत के सामान है, कबीर ने बहुत से दोहो (Sant Kabir Das Ke Dohe) की रचना की, जिनको पूरी दुनिया में सराहा गया। उन्होंने लोगों को उच्च जाति और नीच जाति या धर्म को नकारते हुए भाईचारे के साथ रहने के लिए प्रेरित किया। इन्होने अपने जीवन काल में कबीर ग्रन्थावली, अनुराग सागर, सखी ग्रन्थ, बीजक जैसे महान ग्रन्थ की रचना की।

संत कबीर दास के दोहे गागर में सागर के समान हैं। यदि कोई उनका गूढ़ अर्थ समझ कर अपने जीवन में उतारता है तो उसे निश्चय ही मन की शांति के साथ-साथ ईश्वर की प्राप्ति होगी और सभी काम करने में आसानी मिलेगी। कबीर के दोहे सांसारिक जीवन के जीवन को दर्शाते है। उन्हें पूरी दुनिया की प्रसिद्धि प्राप्त हुई. कबीर हमेशा जीवन के कर्म में विश्वास करते थे।

इनको मानने वालो ने एक धार्मिक समुदाय का निर्माण किया जिसका नाम कबीर पंथ हुआ। कुछ सूत्र कहते है की कबीर के अनुयायी ने संत कबीर सम्प्रदाय का निर्माण किया है. इस सम्प्रदाय के लोगों को कबीर पंथी कहा जाता है।

Kabir Das Bio

पूरा नामसंत कबीरदास
उपनामकबीरदास, कबीर परमेश्वर, कबीर साहेब
जन्मसन 1440
जन्म स्थानलहरतारा, कशी, उत्तरप्रदेश
मृत्युसन 1518
मृत्यु स्थानमघर, उत्तरप्रदेश, भारत
रचनाकबीर ग्रन्थावली, अनुराग सागर, सखी ग्रन्थ, बीजक
Kabir Das Ke Dohe in Hindi

Kabir Das Ke Dohe In Hindi

इस लेख में हम संत कबीर के कुछ लोकप्रिय दोहे (Sant Kabir Das Ke Dohe) और उसके meanings के बारे में बता रहे है।

गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय॥

कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि जब गुरु और स्वयं ईश्वर एक साथ हो तब पहले किसका अभिवादन। इस पर कबीर कहते हैं कि जिस गुरु ने ईश्वर का महत्व सिखाया हैं जिसने ईश्वर से मिलाया हैं वही श्रेष्ठ हैं क्यूंकि उसने ही तुम्हे ईश्वर क्या हैं बताया हैं और उसने ही तुम्हे इस लायक बनाया हैं कि आज तुम ईश्वर के सामने खड़े हो और हमें गुरु के चरण स्पर्श करने चाहिए।

रास्ते चलते-चलते जो गिर पड़े उसका कोई कसूर नहीं लेकिन जो बैठा रहेगा तो बैठे कुछ भी नहीं होगा। किसी कार्य को करने से ही सही होगा यदि किसी काम को किया बिना खुद पर दोष लेना सही नहीं है।

साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय

आज के समय में हर कोई हर कोई पैसे कमाने में लगा हुआ है, ये दोहा उनके लिए ही है। इस दोहे के माध्यम से कवि लोगो को संतुष्ट जीवन के बारे में बता रहे है, कबीर दास जी कहते हैं कि हे प्रभु मुझे ज्यादा धन और संपत्ति नहीं चाहिए, मुझे केवल इतना चाहिए जिसमें मेरा परिवार अच्छे से खा सके। इसके साथ यदि कोई मेरे घर पर आता है तो वो भी भूखा ना जाये।

साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।

इस संसार में ऐसे सज्जनों की जरूरत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है। जो सार्थक को बचा लेंगे और निरर्थक को उड़ा देंगे।

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान॥

कबीर जी इस दोहे में कहते है कि, किसी भी व्यक्ति कि तुलना उसकी जाती से नहीं कि जा सकती, यानि की किसी सज्जन व्यक्ति की सज्नता का अनुमान भी उसकी जाति से नहीं लगाया जा सकता। उसका ज्ञान और व्यवहार ही अनमोल है. जैसे किसी तलवार के लिए म्यान का कोई महत्व नहीं, जरुरत पड़ने पर तलवार ही काम आएगी न की उसकी म्यान। इसी प्रकार जीवन में सिर्फ ज्ञान ही काम आता है।

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय

कबीर दास जी कहते हैं कि मैं सारा जीवन दूसरों की बुराइयां को देखने में लगा दिया लेकिन जब मैंने खुद अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई इंसान नहीं है। अर्थात हम लोग दूसरों की बुराइयां देखने में लगे रहते है लेकिन अपनी बुराइओं को नहीं देखते।

निंदक नियेरे राखिये, आँगन कुटी छावायें
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए

इस दोहे में कबीर कहते हैं कि निंदक हमेशा दूसरों की बुराइयां करने वाले लोगों को अपने पास रखना चाहिए, क्यूंकि ऐसे लोग समय समय पर आपकी बुराइओं के बारे में आपको बताते रहेंगे और आप आसानी से अपनी गलतियां सुधार सकते हैं। इस तरह से आपका स्वभाव शीतल बना रहता हैं।

माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय,
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय

इस दोहे के माध्यम से कबीर दास जी ने मनुष्य को सहजता से रहने के लिए प्रेरित किया है। इसके लिए उन्होंने उन्होंने कुम्हार और उसकी कला को लेकर कहा हैं कि जब कुम्हार बर्तन बनाने के लिए मिटटी को रौंद रहा था, तो मिटटी कुम्हार से कहती है – आज तू मुझे रौंद रहा है, एक दिन ऐसा आएगा जब तू भी इसी मिटटी में मिल जायेगा और मैं उस दिन में तुझे रौंदूंगी।

माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर

इस दोहे में कबीर जी ने संसार कि सबसे बड़ी समस्या के बारे में बताया। कबीर दास जी कहते हैं मनुष्य की इच्छा, उसका एश्वर्य अर्थात धन सब कुछ नष्ट होता हैं, लेकिन इंसान की इच्छा और ईर्ष्या कभी नहीं मरती, अंत समय तक भी आशा और भोग की आस बनी रहती है।

जीते जी ही मरना अच्छा है, यदि कोई मरना जाने तो। मरने के पहले ही जो मर लेता है, वह अजर-अमर हो जाता है। शरीर रहते-रहते जिसके समस्त अहंकार समाप्त हो गए, वे वासना – विजयी ही जीवनमुक्त होते हैं।

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर
पंछी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर

इसमें कड़वी कहना चाहता है की बड़े होने से क्या फायदा, जैसे खजूर का पेड़ इतना बड़ा होता है लेकिन वो किसी काम का नहीं होता। इस पेड़ से पंछी को न तो छाया ही मिलती है और न फल ही मिलता है अर्थात बड़े आदमी जो अपनी महानता का उपयोग नहीं करते हैं।

इस दोहे में कबीर जी कहते है की प्रतिदिन के आठ पहर में से पाँच पहर तो काम धन्धे में खो दिये और तीन पहर को सोने में गुजार दिया। इस प्रकार एक पहर भी हरी भजन के लिए निकाल नहीं पाए, फिर व्यक्ति को मोक्ष कैसे मिलेगा।

आज कि इस पोस्ट में हमने आपको kabir के दोहे और उसके अर्थ के बारे में बताया। इन दोहों के माध्यम से जो कबीर दास जी ने लोगो को आसान जीवन जीने का सन्देश दिया है। आशा करते है की आपको ये लेख पसंद आया होगा। यदि इससे जुड़ा कोई सवाल या सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में जरुर बताएं।

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