Shri Shani Stotra in Hindi : शनि देव को कर्मदाता माना जाता है, अगर आपके अच्छा कर्म करेंगे तो जीवन में सुख समृद्धि बनी रहेगी। माना जाता है कि श्री शनि स्तोत्र का जाप करने से भगवान शनिदेव का प्रकोप कम होता है। अगर आप भी शनि देव की कृपा पाना चाहते है तो हर शनिवार के दिन एक बार सुबह एवं एक बार शाम Shri Shani Stotra का पाठ जरूर करे।
Shri Shani Stotra in Hindi – श्री शनि स्तोत्र अर्थ सहित
|| श्री शनि स्तोत्र ||
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:॥
अर्थ – जिनका शरीर भगवान शंकर के समान कृष्ण तथा नीले रंग का है. इस सम्पूर्ण संसार के लिए कालाग्नि तथा कृतांत रूप श्री शनैश्चर को मेरा पुनः पुनः प्रणाम है
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते॥
अर्थ – जिनका शरीर कंकाल के समान मांस-हीन एवं जटाएं व दाढ़ी-मूंछ बड़ी हुई है. जिनके नेत्र बड़े-बड़े, पीठ से सटा हुआ पेट एवं भयानक आकार वाले भगवान शनि देव को मेरा प्रणाम है.
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते॥
अर्थ – जिनका शरीर दीर्घ है, रोएँ मोटे है, जो लम्बे-चौड़े लेकिन जर्जर शरीर वाले है एवं जिनकी दाढे कालरूप है. उन भगवान शनि देव को मेरा पुनः पुनः प्रणाम है
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने॥
अर्थ – हे भगवान शनि देव ! आपके नयन कोटर की भांति गहरे है, आपकी ओर देखना बहुत ही कठिन है, आपका रूप भीषण, रौद्र तथा बहुत ही विकराल है.
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च॥
अर्थ – अभय प्रदान करने वाले देवता, भास्कर पुत्र, सूर्यनंदन, आप सब कुछ भक्षण करने वाले है. ऐसे भगवान शनि देव को मेरा प्रणाम है.
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते॥
अर्थ – आपकी दृष्टि अधोमुखी है, आप मंद गति से चलने वाले एवं जिसका प्रतीक तलवार के समान है. उन भगवान शनि देव को मेरा पुनः पुनः प्रणाम है.
तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:॥
अर्थ – आपने तपस्या के माध्यम से अपने शरीर को दग्ध कर लिया है, आप हमेशा योगाभ्यास में तत्पर, भूख से आतुर व अतृप्त रहते है| आपको सदा मेरा प्रणाम है.
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्॥
अर्थ – जिनके नेत्र ही ज्ञान है, काश्यपनंदन सूर्य पुत्र शनि देव को मेरा प्रणाम है. आप जिस व्यक्ति से संतुष्ट हो उसे राज्य दे देते है एवं रुष्ट होने पर उसे क्षीण भी लेते है.
देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:॥
अर्थ – मनुष्य, देवता, असुर, विद्याधर, सिद्ध एवं नाग – यह सब आपकी दृष्टि पड़ने मात्र से ही नष्ट हो जाते है. ऐसे भगवान शनि देव को मेरा प्रणाम है
प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल:॥
अर्थ – आप मुझपर प्रसन्न होए| मैं वर पाने के योग्य हूँ तथा आपकी शरण में आया हूँ
॥ इति श्री शनि स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥